ग़ज़ल
(डा.साथी लुधिआनवी)
बदल गया है यार रफ़ता रफ़ता।
बड़्हते गए तकरार रफ़ता रफ़ता।
=एक साथ ही जीने के थे वाअदे,
कंम हूए इकरार रफ़ता रफ़ता।
=फ़ूलों जेैसी बात कीआ करते थे,
फ़ूल बने अंगार रफ़ता रफ़ता।
=आशक को फ़ूलों की मार बहुत है,
ना लहिराअ तलवार रफ़ता रफ़ता।
= गुज़र गई है गगन में गाती गाती,
कूंजों की इक डार रफ़ता रफ़ता।
=दुनीआं की बदअमनी साथ झगड़ते,
मिट गए ख़ुद फ़न्नकार रफ़ता रफ़ता।
=पत्थरयुग से कंपिऊटर तक कैसे,
बदल गया संसार रफ़ता रफ़ता।
=इंटरनैट के युग में दम तोड़ेंगे,
कागज़ के अख़बार रफ़ता रफ़ता।
=मौसम बदले,नंगी हो गईं शाख़ें,
बीती मसत बहार रफ़ता रफ़ता।
=गर साहिल को छोड़ोगे तुंम ''साथी'',
पहुंचेोगे उस पार रफ़ता रफ़ता।
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