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मंदर में
(डा.साथी लुधिआनवी-लंडन)
होता है भगवान का साइआ मंदर में।
कौन अपना और कौन पराइआ मंदर में।
अपने सारे दुक्ख यहां ले आते हैं,
दुक्ख सुनने को शाम बिठाइआ मंदर में।
मंदर में भगवान को 'गर इक फ़ूल चड़्हे,
वुह भी होता है सरमाइआ मंदर में।
जिस मंदर में निरधन आते हों ज़िआदा,
कंम होती है अकसर माइआ मंदर में।
बाहर जिस ने लूटा सारी दुनीआं को,
उस ने सोना ख़ूब चड़्हाइआ मंदर में।
जिस ने बाहर अबला की पत्त लूटी है,
देवी को है सीस झुकाइआ मंदर में।
बाहर जीवन बिलकुल ही महिफ़ूज़ नहीं,
लोग़ों ने प्रभ को बतलाइआ मंदर में।
बाहर दुनीआं रफ़ता रफ़ता टूट रही,
एक शख़स संदेसा लाइआ मंदर में।
दरशन दो भगवान कि हम है तरस रहे,
पंडत जी ने भजन है गाइआ मंदर में।
बाहर लोगों को माख़न है कहां नसीब,
लेकिन शाम ने माखन खाइआ मंदर में।
अगनी प्रीख़शा ली थी राम ने सीता की,
लेकिन हम ने साथ बिठाइआ मंदर में।
लगता है कि कवी संमेलन होगा आज,
मैं ने देखा "साथी" आइआ मंदर में।